वो cricket मैच जो साल 2003 , जो हर भारतीय को उखाड़ के रख देता है

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जो बीत गया है वो अब दौर न आएगा मेरे दिल में सिवा तेरे कोई और न आएगा कोई और न आएगा जी हां यह सच है कि वर्तमान में तमाम भारतीय क्रिकेटर हैं जिनके हम फैन हैं लेकिन सच माने और दिल की कहें तो हम आज भी वह साल 2003 वाला विश्वकप कभी भूल नही पाते हैं। वह सचिन तेंदुलकर का शोएब अख्तर को पीटना आज भी भूलता नही है। वह आस्ट्रेलियाई टीम का क्रिकेट की दुनिया में एकक्षत्र राज कोई कभी नही भूल सकता है। वह आस्ट्रेलियाई तेज गेंदबाज जिसमें मैक्ग्रा और ब्रेट ली रहते थे उनकी घातक गेंदबाजी कोई नही भूल सकता है। 

कप्तान कोई भी आया हो कोई भी गया हो लेकिन हम आज भी कप्तान सौरव गांगुली को ही मानते हैं। सौरव गांगुली भले ही भारतीय टीम को कभी विश्वकप न जिता पांए हों लेकिन जो जज्बा उनकी कप्तानी में उस दौर में दिखता था वह कोई और नही दिखा सकता है। विराट कोहली एक कप्तान के रूप में दादा की तरह अक्रामक जरूर दिखे थे। जिस दौर में आस्ट्रेलियाई खिलाङी दुनिया की किसी भी टीम के खिलाङी के साथ स्लेजिंग किया करते थे उस दौर में भी दादा आस्ट्रेलियाई खिलिङियों की नाक में दम कर दिया करते थे। सहवाग तो दादा के वह सैनिक थे जो आस्ट्रेलियाई धरती पर घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक कर दिया करते थे। जिनको याद न हो उनको आस्ट्रेलियाई धरती पर एक टेस्ट मैच में सहवाग की 195 रनों की पारी की हाईलाईट देख लेनी चाहिए।

वे लोग जो आज के दौर में शतक के नजदीक आकर टुकटुक करना शुरू कर देते हैं उनको आज के बीस साल पहले का सहवाग का बयान सुन लेना चाहिए जब उन्होंने खुले तौर पर कहा था कि वह चाहे शून्य पर हों,99 रन पर हों,199 रन पर हों या 299 रन पर हों वह हमेशा चौका या छक्का जङने की कोशिश करते रहेंगे। सहवाग ने न सिर्फ यह बयान दिया था बल्कि यह करके भी दिखाया था। साल 2011 के विश्वकप में लगभग हर मैच में वह चौके से अपना खाता खोले थे वहीं वह कई बार शतक के नजदीक आकर छक्का जङने की कोशिश में आउट हुए थे।

वे भी क्या दिन थे जब सचिन और सहवाग मिलकर ओपनिंग किया करते थे। मुकाबला पाकिस्तान से हो और सामने चाहे उमर गुल हों या शोएब अख्तर हों सचिन तेंदुलकर और वीरेन्द्र सहवाग जब चौका या छक्का जङते थे तो रेडियो पर जब कमेन्ट्री के दौरान 'ये बीएसएनएल चौक कनेक्टिंग इन्डिया' का प्रचार आता था उसे सुनकर अलग ही लेवल का मजा आता था। वह रेडियो कमेन्ट्री का दौर और मैच के ही दौरान समाचारों के लिए जब कमेन्ट्री रोक दी जाती थी तो उन रेडियो चैनलों को खोजकर चलाना जिनपर कमेन्टरी आती थी अलग ही सुकून दिया करता था। 

दादा का सहवाग को खुला सांड की तरह छोङ देना और सहवाग का उसी सांड की तरह का आतंक आज भी हमारे दिलों में बस चुका है। सहवाग के जाने के बाद कोई ओपनर उनके जैसा टीम इंडिया में टिक नही पाया है। यशस्वी जायसवाल टेस्ट में सहवाग की याद दिलाते जरूर हैं। पृथ्वी शाॅ भी उनकी ही तरह हैं लेकिन ओरिजनल की अलग क्वालिटी होती है और सहवाग जैसा जरूर भविष्य में कोई मिल सकता है लेकिन सहवाग का मिलना नामुमकिन है। दादा और उनकी बनाई हुई टीम इंडिया आज पूरी क्रिकेट की दुनिया पर राज करती अगर कुछ लोगों की राजनीतिक नजर भारतीय क्रिकेट पर नही पङी होती। दादा की तरह खुले दिल वाला कप्तान न आज तक कोई हुआ है और न ही होगा।

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